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सभी सज्जनो को पता होगा कि प्रत्येक ग्रह अपने से तीसरे पांचवे भाव को देखता है,गुरु राहु केतु पूरी तरह से देखते है,लेकिन बाकी के अपनी साधारण द्रिष्टि से देखते है,किसी भी ग्रह की मनुष्य की तरह से सामने वाले ग्रह पर निगाह जाती है,इस प्रकार से वैदिक ज्योतिष से सप्तम ग्रह और भाव को ग्रह जरूर देखता है,महाभारत की कथा सभी सज्जनों को पता होगी,कि जब अर्जुन और दुर्योधन दोनो ही भगवान श्रीकृष्ण के पास सहायता मांगने के लिये गये थे,अर्जुन देर से पहुंचे थे सो पैरों के पास बैठ गये थे,दुर्योधन पहले पहुंच गया था,सो सिर के पास बैठा था,भगवान श्रीकृष्ण जब जगे तो सबसे पहले उन्होने अर्जुन को देखा था,उन्होने अर्जुन को देखकर उनका हाल चाल पूंछा,उसी समय दुर्योधन ने उनको टोका कि वह पहले आया है,अत: उससे ही पहले बात करें,लेकिन योगेश्वर ने जबाब दिया था,कि जगने के बाद सबसे पहले जो सामने पैरों की तरफ़ होता है,वही दिखाई देता है,सामने के बाद जगने पर दाहिने और बायें निगाह जाती है,दाहिने बलरामजी और बायें धर्म खडा था,अर्जुन के दाहिने धर्म था,और बायें बलदाऊ जी थे,बायां हिस्सा सभी का कमजोर होता है,बलदाऊजी भी उनकी बात को नही काट पाये थे,जब हम किसी की कुन्डली को देखते है,तो सबसे पहले किसी भी भाव को पढते वक्त पहले सातवें भाव को देखते है,फ़िर सहायता के लिये दाहिने और बायें देखते है,यही निगाह त्रिकोणात्मक कहलाती है,और पंचम तथा नवम हमेशा साथी भाव कहे गये है,अधिक हिन्दी में पढने के लिये आप http://astrobhadauria.wikidot.com जरूर देखिये.

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