Guest guest Posted October 17, 2009 Report Share Posted October 17, 2009 मंतà¥à¤°-तंतà¥à¤°-यंतà¥à¤° विजà¥à¤žà¤¾à¤¨ शà¥à¤°à¥€ नारायण दतà¥à¤¤ शà¥à¤°à¥€à¤®à¤¾à¤²à¥€à¤œà¥€ - à¤à¤¾à¤— १ Posted: 16 Oct 2009 10:23 PM PDT चौरासी लाख योनियों में जीव जनà¥à¤® लेते-लेते अंत में मनà¥à¤·à¥à¤¯ को जनà¥à¤® मिलता है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ योनी में à¤à¥€ जीवन के अनेक रसों, à¤à¥‹à¤—ों में लिपà¥à¤¤ होने बाद जब उसे जीवन की निःसà¥à¤¸à¤¾à¤°à¤¤à¤¾ का बोध होता है, वहीं कà¥à¤·à¤£ इशà¥à¤µà¤° के पथ पर, आतà¥à¤® कलà¥à¤¯à¤¾à¤£ à¤à¤µà¤‚ परमानंद के पथ पर बढ़ा पहला कदम होता है। और यही से पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚ठहोती है उसकी खोज, जो की सदैव से ही जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ के लिठविचारणीय विषय रहा है, कि परमातà¥à¤®à¤¾ का सà¥à¤µà¤°à¥à¤ª कà¥à¤¯à¤¾ है?और जब जीव की Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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