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kya kabhi socha hai

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जय गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ , सà¥à¤¨à¥‡à¤¹ ,पà¥à¤°à¥‡à¤®, ममतà¥à¤µ,करà¥à¤£à¤¾,पूरà¥à¤£à¤¤à¥à¤µ,अगाध,अपार,वातà¥à¤¸à¤²à¥à¤¯-मयता आदि शबà¥à¤¦à¥‹à¤‚ को यदि à¤à¤• मूरà¥à¤¤ रूप या आकृति दी जाये तो निशà¥à¤šà¤¯ ही वो आकृति मेरे सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ निखिलेशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤¨à¤‚द जी की ही होगी .विगत २२ वरà¥à¤·à¥‹à¤‚ में मैंने यही देखा और अनà¥à¤­à¤µ किया है .यहाठबात देखा और अनà¥à¤­à¤µ किया की है, सिरà¥à¤« देखा की नहीं ....... कà¥à¤¯à¥‚à¤????????? कà¥à¤¯à¥‹à¤‚कि

देखा हà¥à¤† तो गलत भी हो सकता है पर अनà¥à¤­à¤µ पर परिकà¥à¤·à¤£ की मोहर भी तो रहती है .जो गलत नहीं होने देती ,ठीक वैसे ही जैसे विशà¥à¤µà¤¾à¤¸ मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• से उपजता है इसलिठटूट भी जाता है हिल भी सकता है ,पर ,शà¥à¤°à¤¦à¥à¤§à¤¾ हà¥à¤°à¤¦à¤¯ से उपजती है और कभी भी भंग नहीं होती. ये मेरा दृषà¥à¤Ÿà¤¿à¤•à¥‹à¤£ है .. आप कहा तक सहमत है ये मैं नहीं बता सकता. सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ हमेशा कहते थे की जैसे शिषà¥à¤¯ का चयन बहà¥à¤¤ ही सावधानी से और धैरà¥à¤¯ पूरà¥à¤µà¤•

किया जाता है वैसे ही गà¥à¤°à¥ को भी पहले अपनी कसौटी पर परख लेना चाहिठ,फिर गà¥à¤°à¥ कहना चाहिठ.कà¥à¤¯à¥‚ंकि गà¥à¤°à¥ कहने के बाद निंदा और गà¥à¤°à¥ आलोचना की कोई जगह नहीं रहती . मà¥à¤à¥‡ परमहंस विशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤¨à¥à¤¦ जी के जीवन का वो वरà¥à¤£à¤¨ याद आ रहा है,जब उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को दीकà¥à¤·à¤¾ देने के लिठसिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® से अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ लेनी पड़ती थी .अब वो आदेश कब मिलता था ये निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ नहीं रहता था, पर आदेश के बाद ही

दीकà¥à¤·à¤¾ की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ संपनà¥à¤¨ होती थी . कितनी कà¥à¤²à¤¿à¤·à¥à¤Ÿà¤¤à¤¾ ,कितनी पाबंदियों का सामना सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® के योगियों को करना पड़ता था ,ये तो वे ही भली भांति जानते थे. सूरà¥à¤¯-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤‚ के पूरà¥à¤£ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने के लिठसà¥à¤µà¤¾à¤®à¥€ जी ने à¤à¤• विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤‚ भवन का निरà¥à¤®à¤¾à¤£ भी करवाया था ,जो आज भी विशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤‚द कानन (वाराणसी)में है. पर जà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤—ंज से उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ à¤à¤¸à¤¾ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सामूहिक रूप से पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने की

अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं दी गयी, फलसà¥à¤µà¤°à¥‚प वो योजना कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤¨à¥à¤µà¤¿à¤¤ नहीं हो पाई. इसी पà¥à¤°à¤•à¤¾à¤° सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ को भी जब सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® से हमारे मधà¥à¤¯ भेजा जा रहा था. तब सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने दादा गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ से कहा था की "गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ यदि आप मà¥à¤à¥‡ इस à¤à¥à¤²à¤¸à¤¤à¥€ आग में डालना ही चाहते हैं तो डाल दीजिये पर मà¥à¤à¥‡ इस बात की अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ दीजिये की मैं आपने जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को पूरà¥à¤£ रूपेण गृहसà¥à¤¥ शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के बीच पà¥à¤°à¤¸à¤¾à¤°à¤¿à¤¤ कर सकूठवो भी

सरल रूप में". तब उनकी इस बात का सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® के योगियों दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ विरोध भी हà¥à¤† था ,पर सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ इसी बात पर अड़े रहे.आखिर में उनकी बात को सà¥à¤µà¥€à¤•à¥ƒà¤¤à¤¿ देनी ही पड़ी .कà¥à¤¯à¤¾ आप लोगो ने कभी ये सोचा है की आखिर सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने ये मांग अपने गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के समकà¥à¤· कà¥à¤¯à¥‚ठरखी. इसलिठकी उनका कोई शिषà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ के लिठभटके नहीं .समसà¥à¤¤ दà¥à¤°à¥à¤²à¤­ व गà¥à¤ªà¥à¤¤ परंपरागत जà¥à¤žà¤¾à¤¨ सहज ही à¤à¤• ही जगह पर उपलबà¥à¤§ हो

सके. सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने हमारे लिठजà¥à¤žà¤¾à¤¨ की सभी धाराओं को à¤à¤• ही जगह संजो कर रखी .१९८१ से उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने लगातार शिविरोंके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾, पतà¥à¤°à¤¿à¤•à¤¾ के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ तथा वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त रूप से अपने तपसà¥à¤¯à¤¾à¤‚श को निरंतर साधकों ,शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते रहे.इसके लिठनिरंतर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने आलोचनाओं तथा तंतà¥à¤° के पà¥à¤°à¤¹à¤¾à¤°à¥‹à¤‚ को à¤à¥‡à¤²à¤¾ . अपनी तपः उरà¥à¤œà¤¾ निरंतर पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते रहने और शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ के पाप,दोषों,रोगों को अपने ऊपर

लेते रहने के कारण उनका शरीर सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही रà¥à¤—à¥à¤£ हो गया. पर उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¤ की कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को बंद नहीं किया .अपितॠइस कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ को कही तीवà¥à¤° कर उरà¥à¤§à¥à¤µà¤ªà¤¾à¤¤ व दिवà¥à¤¯à¥à¤ªà¤¾à¤¤ की कà¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾à¤“ं को भी अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ पर संपनà¥à¤¨ करने लगे . और इसमें कही भी उनका कोई सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ नहीं था उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ था तो बस यही की सजीव गà¥à¤°à¤‚थों का सृजन शीघà¥à¤° अति शीघà¥à¤° हो जाये. à¤à¤¸à¤¾ भी नहीं था की वे जिस कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को भोग रहे थे ,उन

कषà¥à¤Ÿà¥‹à¤‚ को वे समापà¥à¤¤ नहीं कर सकते थे ...... पर यदि à¤à¤¸à¤¾ नहीं किया तो इसके पीछे à¤à¤• ही कारण था की उचà¥à¤š कोटि के योगी या गà¥à¤°à¥, अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को दोषों व पापों से मà¥à¤•à¥à¤¤ तभी कर पते हैं जब विधि अनà¥à¤¸à¤¾à¤° उन दोषों को वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही भोगे. साथ ही साथ समसà¥à¤¤ गà¥à¤ªà¥à¤¤ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को शà¥à¤°à¥ƒà¤‚खलाबदà¥à¤§ रूप में वे शिविरों के माधà¥à¤¯à¤® से भी अपने शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करते रहे .चाहे बात १० महाविदà¥à¤¯à¤¾ साधनाओं की हो, साबर

साधनाओं की हो, तंतà¥à¤° साधनाओं की हो, मà¥à¤¸à¥à¤²à¤¿à¤®- जैन साधनाओं की हो ,लामा साधनाओं की हो ,उगà¥à¤° साधनाओं की हो,शमशान साधनाओं की हो ,पारद विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤‚ की हो, आयà¥à¤°à¥à¤µà¥‡à¤¦- हिपà¥à¤¨à¥‹à¤Ÿà¤¿à¤¸à¥à¤® की हो , जà¥à¤¯à¥‹à¤¤à¤¿à¤· की हो, या फिर उस अदà¥à¤µà¤¿à¤¯à¥à¤¤à¥€à¤¯ व गà¥à¤ªà¥à¤¤ सूरà¥à¤¯-विजà¥à¤žà¤¾à¤¨à¤‚ की हो जिसे पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ करने की सà¥à¤µà¤¯à¤‚ परमहंस विशà¥à¤¦à¥à¤§à¤¾à¤¨à¤‚द जी को भी अनà¥à¤®à¤¤à¤¿ नहीं मिल पाई थी. अब बात करते हैं १९९४-९८ तक की जो साधक उस समय थे

,उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ याद ही होगा की सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ हमेशा à¤à¤• बात कहते थे की मेरा शरीर नहीं अपितॠमेरा जà¥à¤žà¤¾à¤¨ आप सभी लोगो का गà¥à¤°à¥ है . वे हमेशा कहते थे की जब भी मेरे गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ मà¥à¤à¥‡ आदेश देंगे , सब कà¥à¤› छोड़ कर मैं उनके पास सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® लौट जाऊंगा. à¤à¤• महतà¥à¤µà¤ªà¥‚रà¥à¤£ बात मैं आप सभी लोगो को बता दूं की उचà¥à¤š कोटि के योगी कभी भी अपने दीकà¥à¤·à¤¾ शरीर को नहीं छोड़ते ,बलà¥à¤•à¤¿ उस मूल शरीर को किसी गà¥à¤ªà¥à¤¤ व

सà¥à¤°à¤•à¥à¤·à¤¿à¤¤ जगह पर रख कर अनà¥à¤¯ शरीर के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ अपनी साधनाओं को आगे बढाते रहते हैं. उनका मूल शरीर हमेशा ही जीवित रहता है जैसा की सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ का निखिलेशà¥à¤µà¤°à¤¾à¤¨à¤¦ जी के रूप में भवà¥à¤¯ व अदà¥à¤µà¤¿à¤¯à¥à¤¤à¥€à¤¯ देह रहा है . १९९२ में पà¥à¤°à¥‡à¤¸ साकà¥à¤·à¤¾à¤¤à¥à¤•à¤¾à¤° के दौरान सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने बताया भी था की उनकी साधनातà¥à¤®à¤• व पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤—त आयॠहजारों सालों की है. १९९६ से सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने वे दीकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ भी देनी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¤‚भ कर

दी थी ,जिनके लिठशासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ का सपषà¥à¤Ÿ आदेश था की बगैर परखे ये किसी को न दी जाये. वैसे भी सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ जो भी दीकà¥à¤·à¤¾ देते थे उन दीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं का साधनातà¥à¤®à¤• कà¥à¤°à¤® वे अपने सामने ही करीब १ घंटे तक संपनà¥à¤¨ करवाते थे और उस साधना और दीकà¥à¤·à¤¾ की गà¥à¤ªà¥à¤¤ विधियों को उस शिषà¥à¤¯ को भी बताते थे ,जिससे उस साधक को पूरà¥à¤£ सफलता मिल सके. शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ की साधनातà¥à¤®à¤• पà¥à¤°à¤—ति के अतिरिकà¥à¤¤ उनका कोई भी सà¥à¤µà¤¾à¤°à¥à¤¥ नहीं रहा . १९९८

के गà¥à¤°à¥ जनà¥à¤® महोतà¥à¤¸à¤µ में उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने १४ दिवà¥à¤¯ दीकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ दी थी .और इन दीकà¥à¤·à¤¾à¤“ं में अंतिम दिवस जब उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने जब "अंगà¥à¤·à¥à¤Ÿ शरीर धारण यà¥à¤•à¥à¤¤ निशà¥à¤šà¤¿à¤¤ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ दीकà¥à¤·à¤¾ और वीर वैताल यà¥à¤•à¥à¤¤ तà¥à¤°à¤¿à¤¨à¥‡à¤¤à¥à¤° जागरण दीकà¥à¤·à¤¾ " की जब घोषणा की तो उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ दादा गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने सà¥à¤ªà¤·à¥à¤Ÿ मना कर दिया था और ये भी कह दिया की तà¥à¤®à¥à¤¹à¥‡ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® वापिस आजाओ पर ये दीकà¥à¤·à¤¾ नहीं दोगे .तब सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने कहा था की

अब तो मैंने इन शिषà¥à¤¯à¥‹à¤‚ को वचन दे दिया है ,भले ही आप मà¥à¤à¥‡ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® बà¥à¤²à¤¾ लें पर मैं ये दीकà¥à¤·à¤¾ दे कर ही रहूà¤à¤—ा. और उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने वे दीकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ तो दी ही साथ ही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने उस दीकà¥à¤·à¤¾ को भी साधको को पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ की जिसके दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ शिषà¥à¤¯ जब भी चाहे अपनी साधना के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ से वारà¥à¤¤à¤¾à¤²à¤¾à¤ª कर सके. उस जनà¥à¤® महोतà¥à¤¸à¤µ की विदाई बेला पर सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर और उठा कर विदा

ली थी ,जबकि वे पà¥à¤°à¤¤à¥à¤¯à¥‡à¤• शिविर में हाथ हिलाकर विदा लेते थे .कà¥à¤¯à¤¾ ये हमारे समà¤à¤¨à¥‡ के लिठपरà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ नहीं था की हमें जो दीकà¥à¤·à¤¾à¤à¤‚ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने दी थी उसका मूलà¥à¤¯ उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कà¥à¤¯à¤¾ देना था. शायद हम ये बात कभी नहीं समठपाà¤à¤‚गे.... पर सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® जाने के पहले ही उनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ पता था की हमारे जैसे नालायक शिषà¥à¤¯ जिनà¥à¤¹à¥‡à¤‚ शरीर को देखने की आदत है और जो शरीर को ही गà¥à¤°à¥ मानते हैं के लिठदिवà¥à¤¯ जà¥à¤žà¤¾à¤¨ से

परिपूरà¥à¤£ तà¥à¤°à¤¿à¤®à¥‚रà¥à¤¤à¤¿ गà¥à¤°à¥ को हमारे मारà¥à¤—दरà¥à¤¶à¤¨ के लिठनियà¥à¤•à¥à¤¤ कर गठ.ताकि हम भटके नहीं .और वे सà¥à¤µà¤¯à¤‚ हमारे चहà¥à¤ और वà¥à¤¯à¤¾à¤ªà¥à¤¤ हो गठताकि हमारी पà¥à¤°à¤¾à¤°à¥à¤¥à¤¨à¤¾ कही तीवà¥à¤° गति से पूरी हों. अब मेरे कà¥à¤› सवाल हैं आपसे ,कà¥à¤¯à¤¾ आप जवाब देंगे???????????????????????????? १.सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के समय में ही बहà¥à¤¤ से दिमाग वाले à¤à¤¸à¥‡ थे जो मसà¥à¤¤à¤¿à¤·à¥à¤• का पà¥à¤°à¤¯à¥‹à¤— जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ करते थे और हमेशा दà¥à¤–ी रहते थे .आज तो à¤à¤¸à¥‡ लोगो की संखà¥à¤¯à¤¾

कही जà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ हो गयी है .तो इसमें दोष किसका है ??? अरे जब हम गà¥à¤°à¥ से दीकà¥à¤·à¤¾ लेते हैं अपने सà¥à¤µà¤°à¥à¤¥ की पूरà¥à¤¤à¥€ के लिठवो भी अधूरे मन और परखने के लिठतो वो दीकà¥à¤·à¤¾ फलीभूत कैसे होगी.२. दीकà¥à¤·à¤¾ की सफलता के लिठडरीं विशवास और अगाध शà¥à¤°à¥ƒà¤¦à¥à¤§à¤¾ जरूरी है .कà¥à¤¯à¤¾ वो हममे है? यदि नहीं तो हमारी दीकà¥à¤·à¤¾ के वो बीज जो सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने हमारे भीतर रोपित किया था ,वो अंकà¥à¤°à¤¿à¤¤ कैसे होगा.३.सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने जीवन भर जो

भी कारà¥à¤¯ किया ,सबके सामने किया ,पूरà¥à¤£ दृढ़ता के साथ अपने निरà¥à¤£à¤¯ को उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने पालित किया. इस लिठउनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने साधनातà¥à¤®à¤• वातावरण में ही पोषित और उचà¥à¤š साधना संपनà¥à¤¨ हमारे गà¥à¤°à¥à¤¤à¥à¤°à¤¿à¤®à¥à¤°à¥à¤¤à¥€ को सभी गà¥à¤°à¥à¤­à¤¾à¤‡à¤¯à¥‹à¤‚ की सहमती से गà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ सौंपा जो शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤šà¤¿à¤¤ व सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ से यà¥à¤•à¥à¤¤à¤¾ था .फिर हमारे मधà¥à¤¯ के कई भाई सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥à¤­à¥‚ गà¥à¤°à¥ कैसे बन गठ.और बन गठतो बन गठ,लेकिन उनसे दीकà¥à¤·à¤¾ लेने

वाले साधक निखिल परिवार के कैसे हो गठ? ? कà¥à¤¯à¤¾ सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ ने सबके सामने गà¥à¤°à¥à¤ªà¤¦ पà¥à¤°à¤¦à¤¾à¤¨ किया था ,नहीं ,बलà¥à¤•à¤¿ यदि हम à¤à¤¸à¥‡ किसी वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ से दीकà¥à¤·à¤¾ लेते हैं तो हमे लाभा व हनी की जिमà¥à¤®à¥‡à¤¦à¤¾à¤°à¥€ वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿à¤—त रूप से उठानी पदिगी,इसमें निखिल गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के कई योगदान नहीं है .भले ही à¤à¤¸à¥‡ सीधे साधे लोग ये देख कर दीकà¥à¤·à¤¾ लेते हों की ये वà¥à¤¯à¤•à¥à¤¤à¤¿ सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ से दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ है पर सच तो ये है की यदि वो सà¥à¤µà¤¯à¤‚ ही

सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ से आतà¥à¤®à¤¿à¤• रूप से जà¥à¤¦à¤¾ रहता तो अपनी शिषà¥à¤¯à¤¤à¥à¤µ की मरà¥à¤¯à¤¾à¤¦à¤¾ को कभी नहीं लांघता . कà¥à¤¯à¥‚ंकि गà¥à¤°à¥ बनना कठिन नहीं है लेकिन सà¥à¤µà¤¯à¤‚ के बल पर बनों, उसमे गà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ की आध लेना तो गलत है न.४. मà¥à¤à¥‡ कई à¤à¤¸à¥‡ लोगो के पातà¥à¤° आये जिनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने रसेशà¥à¤µà¤°à¥€ दीकà¥à¤·à¤¾ ली हà¥à¤¯à¥€ है,पर जिनसे इन लोगो ने दीकà¥à¤·à¤¾ ली है सà¥à¤µà¤¯à¤‚ उन सà¥à¤µà¤¯à¤®à¥à¤­à¥‚ गà¥à¤°à¥à¤“ं को कभी रसेशà¥à¤µà¤°à¥€ दीकà¥à¤·à¤¾ की पà¥à¤°à¤•à¥à¤°à¤¿à¤¯à¤¾ की कोई जानकारी नहीं

है और नाही उनà¥à¤¹à¥‹à¤‚ने कभी कोई à¤à¤¸à¥€ साधनाà¤à¤‚ की है . गà¥à¤°à¤¨à¥à¤¥ पॠकर कà¥à¤› भी अनाप सनाप बताना नà¥à¤¯à¤¾à¤¯ संगत नहीं है और न ही सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ की इसमें कोई भूमिका है.५. आप यदि सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ से जà¥à¥œà¥‡ हैं तो à¤à¤¸à¤¾ हो ही नाही सकता की आप पर कोई तंतà¥à¤° बाधा हो जाये .à¤à¤¸à¤¾ मैं नाही कहता बलà¥à¤•à¤¿ ये सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के वचन हैं जो कभी गलत नहीं हो सकते .यदि हमारा समरà¥à¤ªà¤£ सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के चरणों में रहा है तो कोई बाधा हमें परेशां

नहीं कर सकती.मेरा खà¥à¤¦ के जीवन इसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ है.६.और यदि à¤à¤¸à¤¾ कोई जà¥à¤žà¤¾à¤¨ उन तथाकथित गà¥à¤°à¥à¤“ं के पास है तो वे इसका पà¥à¤°à¤®à¤¾à¤£ दें. कà¥à¤¯à¥‚ंकि जब हमने ही उस विषय से समà¥à¤¬à¤‚धित साधनाà¤à¤‚ नहीं की तो हमारे दà¥à¤µà¤°à¤¾ दी गयी दीकà¥à¤·à¤¾ कैसे फलीभूत होगी . कà¥à¤¯à¤¾ ये सोचने के विषय नहीं है?????७.गà¥à¤°à¥ बनने के लिठइतना उतावलापन कà¥à¤¯à¥‹à¤‚? कà¥à¤¯à¤¾ हमने शिषà¥à¤¯ के सारे दायितà¥à¤µ के पालन कर लिया है .कà¥à¤¯à¤¾ हमने सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के सारे

जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ कर लिया है. अरे जिस निखिल ने इस सारे बà¥à¤°à¤¹à¥à¤®à¤¾à¤£à¥à¤¡ को ही आंवले की भांति अपने हाथों में धारण किया हà¥à¤† है उनके जà¥à¤žà¤¾à¤¨ को हमने पूरà¥à¤£ आतà¥à¤®à¤¸à¤¾à¤¤ कर लिया और इसका निरà¥à¤§à¤¾à¤°à¤£ भी हमने ही कर लिया की हम गà¥à¤°à¥ बन गठहैं और हम इसके लिठउपयà¥à¤•à¥à¤¤ हैं.८. सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ या उनकी परंपरा से जà¥à¥œà¤¾ हर शिषà¥à¤¯ सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® के योगियों की परंपरा से दीकà¥à¤·à¤¿à¤¤ है. और वैसे भी शासà¥à¤¤à¥à¤°à¥‹à¤‚ के निरà¥à¤¦à¥‡à¤¶ है

की जीवन में चाहे गà¥à¤°à¥ हजार बना लो पर यदि सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ की पà¥à¤°à¤¾à¤ªà¥à¤¤à¤¿ हो गयी है और उनके शकà¥à¤¤à¤¿à¤ªà¤¾à¤¤ या दीकà¥à¤·à¤¾ के बाद हम यदि अपने ललाट पर किसी और के दà¥à¤µà¤¾à¤°à¤¾ दीकà¥à¤·à¤¾ सà¥à¤ªà¤°à¥à¤¶ करवाते हैं तो सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ दà¥à¤µà¤¾à¤° पà¥à¤°à¤¦à¤¤à¥à¤¤ दीकà¥à¤·à¤¾ के कोई फल हमें नहीं मिलता ,कà¥à¤¯à¥‚ंकि सदगà¥à¤°à¥à¤¦à¥‡à¤µ के मिलना मतलब पूरà¥à¤£à¤¤à¥à¤µ पाना. यदि इसके बाद भी जà¥à¤žà¤¾à¤¨ की तलाश में भटकते हैं तो कही ठौर नहीं मिल सकता. मेरा उदà¥à¤¦à¥‡à¤¶à¥à¤¯ किसी

की भावना को आहत करना नहीं है ये मेरे विचार है जो की मैं लगातार देखता रहा हूठअपने आस पास .किसी के इससे सहमत होना जरà¥à¤°à¥€ नहीं है पर मà¥à¤à¥‡ à¤à¤¸à¤¾ लगता है की शायद किसी किसी को कà¥à¤› सोचने के लिठमिल जाये.मैं तो सिरà¥à¤« ये कहना चाहता हूठकी अपनी असफलता के लिठगà¥à¤°à¥ को दोष देने से पहले आतà¥à¤® मंथन कर लें. और कà¥à¤¯à¤¾ कभी आपको इस बात पर गरà¥à¤µ होता है की आप सिदà¥à¤§à¤¾à¤¶à¥à¤°à¤® के पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¾à¤§à¤¾à¤° दà¥à¤µà¤°à¤¾ संसà¥à¤ªà¤°à¥à¤¸à¤¿à¤¤

हैं. यदि होता है तो ने यकीं मानिये दà¥à¤°à¥à¤­à¤¾à¤—à¥à¤¯ कभी आपको छू भी नहीं सकता. और यदि गरà¥à¤µ नहीं होता तो ने ये यकीं रखिये की हमें आतà¥à¤® मंथन की जरूरत है .और यदि हमारे जीवन में कोई बाधा है तो उसके दोषी हम सà¥à¤µà¤¯à¤‚

हैं. आप का ही

 

****ARIF****

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