Guest guest Posted April 19, 2007 Report Share Posted April 19, 2007 ll HARE RAM ll प्रिय मित्र गण, वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि 'अक्षयतृतीया' के नाम से लोकविख्यात है। मात्र धर्मग्रंथों की ही धारणा नहीं है बल्कि शताब्दियों से यह निरंतर अनुभव होता आया है कि अक्षयतृतीया अपने नाम के अनुरूप फल प्रदान करती है। ऋषि-मुनि इस पावन तिथि की प्रशंसा में कहते हैं-सर्वतीर्थेस्नानं देवदर्शनं दानच्चाक्षयफलम्। ''अक्षयतृतीया में दिए गए दान और किए गए तीर्थ-स्नान, देव-दर्शन, होम, जप आदि शुभ कर्मो का पुण्यफल कभी नष्ट नहीं होता है।'' इस तिथि में पितरों का तर्पण करने से पितृगणों को अक्षय तृप्ति मिलती है। धर्मग्रंथों में अक्षयतृतीया की महिमा का बखान करते हुए इस दिन सत्तू, जल से भरा घड़ा, पंखा, लड्डू, दही, चावल आदि के दान का विधान बताया गया है। इस पर्व में यव (जौ) से पूजन-हवन तथा जौ के सत्तू का भोग लगाकर सेवन करने की प्रथा है। उदार धार्मिक धनी लोग एवं सामाजिक संस्थाएं गर्मी में प्यासे लोगों के लिए इस दिन से प्रपा (प्याऊ) बैठाते हैं। 'निर्णयसिन्धु' के अनुसार अक्षयतृतीया के दिन गंगा-स्नान करने से सब पाप धुल जाते हैं। 'महाभारत' एवं 'भविष्यपुराण' में भी अक्षयतृतीया के माहात्म्य का विस्तार से वर्णन किया गया है। अक्षयतृतीया को दोपहर से पहले पूर्वाह्न में स्नान-दान, जप, हवन, पितृ-तर्पण करने पर शास्त्रोक्त फल प्राप्त होता है। 'स्कंदपुराण' में स्वयं श्रीहरि का कथन है-''वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन मेरे शरीर (श्रीविग्रह) में चंदन का लेप करें।'' 'धर्मसिन्धु' में भी लिखा है कि अक्षयतृतीया के दिन भगवान श्रीकृष्ण का चंदन से पूजन-श्रृंगार करने वाला भक्त उनका सामीप्य अवश्य प्राप्त करता है। गौड़ीय वैष्णव देवालयों में चंदनोत्सव बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। मंदिरों की सायंकालीन सेवा में ठाकुर जी का चंदन से होने वाला विशेष श्रृंगार सबका मन मोह लेता है। प्रतिवर्ष पुण्यधाम जगन्नाथपुरी में वैशाख शुक्ल तृतीया से ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी तक 'चंदन-यात्रा' आयोजित होती है। ग्रीष्मकाल में ठाकुर जी की चंदन-सेवा ऋतु के सर्वथा अनुकूल है। इसका उद्देश्य आराध्यदेव को गर्मी में शीतलता प्रदान करना है। अक्षयतृतीया को भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अक्षयफलदाता अमोघ मुहूर्त्त माना गया है। इस 'स्वयंसिद्ध मुहूर्त्त' में लोग बिना कुछ अन्य विचार किए विवाह, शिलान्यास, गृह-प्रवेश आदि समस्त मांगलिक कार्य तथा व्यापार-उद्योग का शुभारंभ निश्चिंत होकर करते हैं। आस्तिकजनों की यह भी धारणा है कि अक्षयतृतीया में सोने को खरीदने से घर में सुख-समृद्धि आती है। महिलायें इस तिथि में स्वर्ण-आभूषण परिवार में संपन्नता आने के विश्वास से खरीदती हैं।पंचांगों की गणना-पद्धति में भिन्नता होने से इस वर्ष अक्षयतृतीया की तारीख एवं पर्वकाल को लेकर जनसाधारण असमंजस में है। दृश्यगणित के अनुसार वैशाख मास के शुक्लपक्ष की तृतीया (अक्षयतृतीया) गुरुवार 19 अप्रैल को प्रात: 9.40 बजे से शुक्रवार 20 अप्रैल को प्रात: 6.25 बजे तक रहेगी। दृक्पक्षीय गणित से शुक्रवार 20 अप्रैल को तृतीया तिथि सूर्योदय के उपरांत तीन मुहूर्त (2 घंटा 24 मिनट) की न्यूनतम अवधि से भी काफी कम है। 'धर्मसिन्धु' का निर्देश है-त्रिमुहूर्त न्यूनत्वे पूर्वा। इससे तात्पर्य है कि दूसरे दिन सूर्योदय के पश्चात 3 मुहूर्त की अवधि से कम होने पर अक्षयतृतीया का पर्व पहले दिन द्वितीया से विद्धा तृतीया में मनाया जाए। इसीलिए दृग्गणितीय पंचांगों में गुरुवार 19 अप्रैल को अक्षयतृतीया का पर्व छपा है। दृक्पक्षीय पंचांगों के प्रभाव-क्षेत्र में अक्षयतृतीया गुरुवार 19 अप्रैल को मनेगी। दृश्यगणितीय मतानुसार अक्षयतृतीया का 'पर्वकाल' एवं 'शुभमुहूर्त' गुरुवार 19 अप्रैल को प्रात: 9.40 बजे से सारे दिन रहेगा।राष्ट्र के अधिकांश तीर्थस्थानों, देवालयों एवं मठों में मान्य धर्मसम्मत प्राचीन सूर्यसिद्धांतीय पंचांग-गणना के अनुसार शुक्रवार 20 अप्रैल को वैशाख शुक्ल तृतीया प्रात: 10 बजकर 38 मिनट तक होने से यह 'उदया तिथि' के रूप में पर्याप्त बलवती है। इस कारण ब्रजमण्डल उत्तरांचल, काशी, प्रयाग, बिहार, झारखण्ड, मिथिलांचल, अवंतिका (उज्जयिनी) सहित देश के अधिकांश क्षेत्रों में शुक्रवार 20 अप्रैल को ही अक्षयतृतीया मानी जाएगी और इसका मुख्य पर्वकाल शुक्रवार 20 अप्रैल को स्थानीय सूर्योदय से प्रात: 10 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। 'पर्वकाल' में गंगा अथवा तीर्थ-स्नान, दान एवं देव-दर्शन करने से अक्षयपुण्य प्राप्त होता है परंतु उत्सव पूरे दिन मनेगा।वैष्णव अपने सम्प्रदाय के नियम का पालन करते हुए 19 अप्रैल को पूर्वविद्धा (द्वितीया से संयुक्त) तृतीया को त्यागकर 20 अप्रैल को 'उदयातिथि' के रूप में पुष्ट वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन ठाकुरजी का चंदन से श्रृंगार, विशेष पूजन और उत्सव करेंगे। वृंदावन में श्रीबांकेबिहारीजी महाराज के श्रीचरणों के वार्षिक दर्शन का सौभाग्य भक्तों को शुक्रवार 20 अप्रैल को मिलेगा। अक्षयतृतीया में प्रशस्त 'रोहिणी' नक्षत्र भी शुक्रवार 20 अप्रैल को ही उपलब्ध हो सकेगा। वैशाख-शुक्ल तृतीया एवं रोहिणी का संयोग समस्त कार्यो में शुभफलदायक और सर्वसिद्धिप्रदाता माना गया है।वस्तुत: अक्षयतृतीया हमें पुण्य अर्जित करने का विशेष अवसर प्रदान करती है। इस आध्यात्मिक महापर्व का हमें सदुपयोग करना चाहिए। जै श्रीराम शशि शेखर HARE_RAM / Astro_Remedies/ Shashi Shekhar Sharma Ahhh...imagining that irresistible "new car" smell? Check out new cars at Autos. Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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