Guest guest Posted May 25, 2009 Report Share Posted May 25, 2009 Monday , May 25, 2009मनà¥à¤·à¥à¤¯ बà¥à¤°à¤®à¥à¤¹à¤¾à¤‚ड की रचना की जाल में जकडा हà¥à¤† है, वह इस बात से अनà¤à¤¿à¤œà¥à¤ž है कि वह दिवà¥à¤¯ निरà¥à¤®à¤¾à¤¤à¤¾ का हिसà¥à¤¸à¤¾ है। जिस जाल में वह फंसा है उसमे अपने आपको इस à¤à¥Œà¤¤à¤¿à¤• शरीर के माधà¥à¤¯à¤® से खà¥à¤¦ को पहचानना है। वह इस समà¥à¤ªà¥‚रà¥à¤£ विशà¥à¤µ में सà¤à¥€ पà¥à¤°à¤¾à¤£à¤¿à¤¯à¥‹à¤‚ की à¤à¤•à¤¤à¤¾ को देख नहीं पा रहा है। मनà¥à¤·à¥à¤¯ ने आधà¥à¤¯à¤¾à¤¤à¥à¤®à¤¿à¤• अनà¥à¤¶à¤¾à¤¸à¤¨ à¤"र उसकी खोज के विषय में अनगिनत गà¥à¤°à¤‚थों का अधà¥à¤¯à¤¯à¤¨ व रचना किया है à¤"र इस पर जनà¥à¤®à¥‡ कई à¤à¥à¤°à¤® पर तरà¥à¤• दिया है। लेकिन, इसमे से उसे कम से कम à¤à¤• या दो पृषà¥à¤ अà¤à¥à¤¯à¤¾à¤¸ में लाना चाहिठताकि वह अपनी इचà¥à¤›à¤"ं पर काबू पा सके। अपने हà¥à¤°à¤¦à¤¯ की गहराई में वह खà¥à¤¶ है। उसे अपने हà¥à¤°à¤¦à¤¯ में पà¥à¤°à¥‡à¤® का बीज बोकर धैरà¥à¤¯ à¤"र समà¤à¤¾à¤µ का विकास करना चाहिà¤à¥¤ ~ बाबा साई सà¥à¤®à¥ƒà¤¤à¤¿ Quote Link to comment Share on other sites More sharing options...
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